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Renuka Gitam

Vasiṣṭha Kavyakantha Ganapati Muni

सुरशिरश्चरः चरणरॆणुका |
जगदधीश्वरी जयति रॆणुका || १ ||

दॆवताशिरॊ दॆशलालितम् |
रॆणुकापदं दिशतु मॆ मुदं || २ ||

कुंडलीपुरी मंडनं महः |
किमपि भासतां मम सदा ह्र्दि || ३ ||

मस्तकैतवं वस्तु शाश्वतं |
अस्ति मॆ सदा शस्तदं ह्र्दि || ४ ||

आदिनारि तॆ पादपंकजं |
स्फुरतु मॆ मनः सरसि सर्वदा || ५ ||

कॆवलं पदॊः सॆवकॊ&स्मि तॆ |
वॆद्मि नॆतरः वॆदसन्नुतॆ || ६ ||

ह्ऱुदय तॆणु नः समुचितॊ&णुना |
परिचयॊंबिका पादरॆणुना || ७ ||

पाहि मुंच वा पादपंकजम् |
त्रिदश सन्नुतॆ न त्यजामि तॆ || ८ ||

चरणमंब तॆ यॊ निषॆवतॆ |
पुनरयं कुचौ धयति किं क्र्ती || ९ ||

अहरहॊ&म्ब तॆ रहसि चिंतया |
धन्यतां गतॊ नान्य दर्थयॆ || १० ||

स्मरजितॊ यथा शिरसि जाह्नवी |
जननि रॆणुकॆ मनसि तॆ क्ऱ्‌पा || ११ ||

अंब पाहि मां दंभ तापसि |
पाद कंजयॊ रादिकिंकरं || १२ |

पुत्रमात्मनः पुण्य कीर्तनॆ |
बहुक्ऱुपॆ कुतॊ मामुपॆक्षसॆ || १३ ||

अंब संस्तुतॆ जंभ वैरिणा |
पाहि मामिमं मग्नमापदि || १४ ||

तत्त्व वादिनः सत्त्व शालिनि |
त्वामजॆ विदुः सत् स्वरूपिणीं ||१५|

त्वां प्रचक्षतॆ सदय वीक्षितॆ |
वॆद वॆदिनॊ मॊद रूपिणीं || १६ ||

संविदं विदु स्त्वामिदं प्रसु |
परमयॊगिनः परम दॆवतॆ || १७ ||

जननि कुंडलीपुरनिवासिनि |
परशुरामवत् पश्य मामिमं || १८ ||

तनय रॊदनं श्रवण शालिनि |
श्ऱुणु सुरार्चितॆ यदि दया ह्र्दि || १९ ||

याचकः सुतॊ भजन मीप्सितं |
तदपि दुर्लभं किमिद मंबिकॆ || २० ||

मास्तु वॆतनं छिन्न मस्तकॆ |
भजनमॆव तॆ याcयतॆ मया || २१ ||

तरल तारया जलज दीर्घया |
सानु कंपया शीत पातया || २२ ||

कॆवलं द्ऱुशा पश्य रॆणुकॆ |
तॆन मॆ शुभं न च तवा शुभं || २३ ||

किंकरीभवत् सुरविलासिनी |
जयति कुंडलीनगरवासिनी || २४ ||

मधुरमंब तॆ चरणपंकजं |
तत्र यद्रतैः त्यज्य तॆ ख़िलं || २५ ||

चरणमंब तॆ चरतु मॆ ह्र्दि |
इय मनामयॆ प्रार्थना मम || २६ ||

भुजग कंकण प्रभ्ऱुति संस्तुतॆ |
भुजभुवामरॆ र्जननि पाहि माम् || २७ ||

कुंडलीपुरी मंडनायिता |
गणपति स्तुता जयति रॆणुका || २८ ||

फलस्तुतिः

सकलामय प्रशमनं दुरित क्षयकारि कांक्षित करं च भवॆत् | सुरसुंदरी जन समर्cइतयॊः ह्ऱुदि रॆणुका चरणयॊः करणं ||

phalastutiḥ

sakalāmaya praśamanaṃ durita kṣayakāri kāṃkṣita karaṃ ca bhavĕt |
surasuṃdarī jana samarcitayŏḥ hṟudi rĕṇukā caraṇayŏḥ karaṇaṃ ||
 

|| ॐ रमणार्पणमस्तु ॐ ||